Soniya bhatt

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गोपी चीर हरण लीला

गोपी चीर(वस्त्र) हरण लीला :- 

  

   गोपियों द्वारा कात्यायनी देवी की पूजा
        गोपियाँ जो कृष्ण  से प्रेम करती हैं। उन्होंने हेमंत ऋतु में(शीत ऋतु से पहले) कात्यायनी देवी की पूजा की हैं। वृन्दावन की सभी कुमारी गोपियाँ यमुना नदी में नित्य स्नान करके कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं जो माँ दुर्गा  का ही एक रूप हैं और वर मांगती हैं –

        विवाह के लिए कात्यायनी देवी माँ की पूजा का मन्त्र

        कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
        नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
       

        हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं।

        इस मन्त्र का जप करते हुए गोपियों ने एक महीने की पूजा की हैं। केवल और केवल भगवान को पाने की कामना हैं।

        गुरुदेव कहते हैं देखिये गोपियाँ कितना सुन्दर पूजा तो माँ दुर्गा की कर रही हैं पर मांग भगवान को रही हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य केवल परमात्मा होना चाहिए। जिस स्थान पर गोपियों ने पूजा की हैं वह स्थान वृन्दावन में आज भी हैं जिसे कात्यायनी पीठ  के नाम से जाना जाता हैं। भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी शास्त्रों में मिलता ही है। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है।

       गोपी चीर(वस्त्र) हरण लीला :- 

        बंधुओ गुरुदेव कहते हैं कुछ लोग शंका करते हैं की भगवान कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुराए। अरे उन्हें क्या जरुरत हैं? जो पुरे जगत के मालिक हैं उनके पास यही काम बचा हैं क्या? अगर आप आध्यात्मिक दृष्टि से देखेगे तो आपको समझ आ जायेगा।
        पहले कथा पढ़िए आध्यात्मिक पक्ष उसके बाद आएगा-

        ये गोपियाँ बड़े सवेरे यमुना में स्नान करने जाती थी। और स्नान करते करते भगवान की लीलाओ का उच्च स्वर से गान करती थी। लेकिन स्नान नग्न होकर करती थी।

        भगवान जानते थे की ये गोपियाँ नग्न होकर स्नान करती हैं और मुझे पति रूप में पाना चाहती हैं। एक रोज भगवान वहां प्रकट हुए और जब गोपियाँ नग्न अवस्था में स्नान कर रही थी तो उनके वस्त्र उठाकर पास के वृक्ष पर चढ़ गए।

        जब गोपियों को पता चला का कान्हा वस्त्र लेकर चला गया हैं तो उन्होंने कहा- कन्हैया हमें हमारे वस्त्र वापिस दो।

        भगवान बोले की ठीक हैं आप बाहर आकर खुद ही अपने वस्त्र ले जाओ ।

        गोपियाँ जान गई की आज भगवान उनसे हंसी कर रहे हैं। वो बाहर नही आई लेकिन जब थोड़ी देर में उन्हें ठण्ड लगने लगी तो कहती हैं कान्हा हमे हमारे वस्त्र दे दो नही तो हमें कष्ट होगा। गोपियाँ कहती हैं की हम तुम्हारी शिकायत नन्द बाबा से करेंगी की तुमने हमारे वस्त्र चुराए।

        भगवान बोले की ठीक है गोपियों आप हमारी नन्द बाबा से शिकायत ही करना।

        तब गोपियाँ बाहर आई हैं और अपने अपने वस्त्र लिए हैं। ये गोपियाँ भगवान को अपना पति मानती हैं इसलिए इस रूप में भगवान के पास गई। और भगवान तो सबके पति हैं। आत्मा का पति परमात्मा ही हैं। एक क्षण के लिए इस देह को भूल जाओ क्योंकि ये मिटटी हैं। जो कुछ हैं आत्मा ही हैं। यदि आप चाहते हो आत्मा परमात्मा में मिल जाये तो शरीर रूपी देह को भूलकर परमात्मा का ध्यान करना पड़ता हैं जिसमे शरीर का होश नही रहता।

        भगवान गोपियों से कहते हैं गोपियों जल के देवता वरुण हैं। और तुमने नग्न स्नान करके जल के देवता का अपमान किया हैं। इसलिए तुम सब वरुण देव से क्षमा मांगो। तब गोपियों ने भगवान कृष्ण की बात मान कर दोनों हाथ जोड़ कर वरुण देव से क्षमा मांगी हैं।

        वास्तव में गोपियों को किसी वरुण का डर नही था। उन्हें पता था की कृष्ण यहाँ जरूर आएंगे। क्योंकि हम उनसे प्रेम करती हैं। और पति रूप में पाना चाहती हैं। गोपियाँ स्वयं भगवान को इस रूप में देखना चाहती थी।

        भगवान कहते हैं गोपियों में जनता हुँ की तुम कात्यायनी देवी से मुझे पति रूप में पाने के लिए कामना करती हो। लेकिन जो मुझे निष्काम पाना चाहता हैं उसे तो मैं मिलता ही हु पर जो मुझे सकाम पाना चाहते हैं उस पर भी में कृपा करता हूँ। जो मुझे प्रसन्न करने के लिए कर्म करता हैं किसी का दिल नही दुखाता वह मुझे प्रिये हैं।

        गोपी एक भाव हैं शरीर नही हैं। प्रत्येक जीव गोपी हैं जो भगवान को पाने की कामना करता हैं। वृन्दावन में आज भी चीर घाट  हैं।

        भगवान गोपियों को वचन देते हैं की आगामी

        अगले पेज पर जाइयेशरद की रात्रि में तुम मेरे रसमय स्वरूप का दर्शन करोगी। इस प्रकार भगवान ने गोपियों की इच्छा पूरी हैं।

        आध्यात्मिक भाव वस्त्र हरण लीला :-


        ये चीर हरण लीला गोपी(जीव ) और वस्त्र(वासना रूपी ) है। जीव और ईश्वर के बीच वासना रूपी वस्त्र है। जैसे माँ अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए उसे अपनी छाती का वस्त्र हटाना पड़ता है नही तो दूध कैसे पिलाएगी। उस तरह से जीव और ब्रह्म के बीच दो कपडे है।एक कपडा परमात्मा पर पड़ा है दूसरा कपडा हम से जीवों पर पड़ा है। परमात्मा जिस वस्त्र से ढका है वो है माया और जीव जिस वस्त्र से ढका है वो है वासना। हम सभी जीव वासना से ढके हुए हैं। जब तक वासना का कपडा नही तब तक परमात्मा का दर्शन नही होता। जब जीव परमात्मा के शरणागत होता है तब भगवान माया का पर्दा भी हटा देते है। और वासना का कपडा खुद हट जाता है। फिर उस रसरूप कृष्ण का दर्शन होता है। क्योंकि परमात्मा श्री कृष्णा रस रूप है। भगवान ने गोपियों को यही कहा जैसे आप बीज को भुन्द दे तो उसमे से अंकुर नही निकलेगा। भगवान ने कहा जब जीव मेरी शरण में आता है तो मैं उसके काम बीज को समाप्त कर देता हूँ। और फिर उसके अंकुरित होने की क्षमता समाप्त हो जाती है।

        भगवान श्री कृष्ण जी की जय !! 

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